ज़िन्दगी

वक़्त के हिसाब से ढलना सीख जाते हैं, 
ए किस्मत तू दे कितने भी ज़ख्म,
हम उबरना सीख जाते हैं |


हार कर भी हम संभलना सीख जाते हैं, 
नींद में भी ख्वाहिशों के ख्वाब सताते हैं, 
निभाने अपने से किया वादा हम, 
रोज़ सवेरे फिर निकल जाते हैं |


ए किस्मत तू दे कितने भी ज़ख्म 
हम उबरना सीख जाते हैं ||