वक़्त के हिसाब से ढलना सीख जाते हैं,
ए किस्मत तू दे कितने भी ज़ख्म,
हम उबरना सीख जाते हैं |
हार कर भी हम संभलना सीख जाते हैं,
नींद में भी ख्वाहिशों के ख्वाब सताते हैं,
निभाने अपने से किया वादा हम,
रोज़ सवेरे फिर निकल जाते हैं |
ए किस्मत तू दे कितने भी ज़ख्म
हम उबरना सीख जाते हैं ||