अकेले ही मन लगता है


ना अपेक्षाओं का बोझ, ना किसी की उपेक्षाओं का डर,


ना दिल दुखने का दर्द, ना दुखाने का बोध,


ना किसी की झक झक, ना अपनी बक बक -


सुनने का मन करता है ,


हां ! मुझे अकेले ही मन लगता है ।|


देखूं मैं बादलों का रुख, या गिनूं  मैं तारे,


महसूस करूं मैं हवा की ठंडक, या फिर गर्म हवा के झोंके ,


बातें करूं मैं खुद से , या जवाब ही दूं ,


बस यूं ही समय गुजार दूं  तो क्या होता है ,


हां ! मुझे अकेले ही मन लगता है । |


कभी किताबों में खुद को खो देना,


किसी कहानी में फिर खुद को पा जाना,


हर एक अफ़साने में -


कुछ अपनापन सा लगता है,


हां ! मुझे अकेले ही मन लगता है।


कोलाहल हो जाए जब दिमाग में,


गाना गाना तब ऊंची आवाज में ,


ना दुनियादारी की भाषा, ना बंदिशों में जीना मुझे समझता है,


 हां ! मुझे अकेले ही मन लगता है। |


अस्थिर हो गर कभी मन तो कागज पर लफ्ज़ उतर आते हैं ,


मस्खरी करने का हो तो, पाव थिरक जाते हैं ,


कुछ पल के सुख-दुख के साथ में क्या रखा है ,


हां! मुझे अकेले ही मन लगता है। |


अकेलेपन से डरते तुम हो ,


साथ अपनों का छोड़ बेगानों में ढूंढते तुम हो,


इस भटकन से किसी को क्या मिला है,


तभी तो इस सब से दूर-  


मुझे अकेले ही मन लगता है।।